क्या भारतीयों की मनोरंजन की हवस इतनी अधिक है की वो अपने लोगो के हत्यारों के साथ ही खेल कूद कर आनंदोत्सव मनाना चाहते हैं?
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दंतेवाड़ा के गांव चिंतलनार की चीखें खामोश भी नहीं हो पाईं थीं, ताडमेटला की धरती में हमारे जांबाज शहीदों का लहू अभी जज्ब भी नहीं हो पाया था, रायगढ और जशपुर के सुदूर ग्रामीण अंचलों में शहीद सपूतों की चिता के फूल भी अभी चुने नहीं गए थे कि राजधानी रायपुर के बर्बर और अय्याश धनकुबेरों ने आनंदोत्सव मनाना शुरू कर दिया.
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दंतेवाड़ा के गांव चिंतलनार की चीखें खामोश भी नहीं हो पाईं थीं, ताडमेटला की धरती में हमारे जांबाज शहीदों का लहू अभी जज्ब भी नहीं हो पाया था, रायगढ और जशपुर के सुदूर ग्रामीण अंचलों में शहीद सपूतों की चिता के फूल भी अभी चुने नहीं गए थे कि राजधानी रायपुर के बर्बर और अय्याश धनकुबेरों ने आनंदोत्सव मनाना शुरू कर दिया....
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दंतेवाड़ा के गांव चिंतलनार की चीखें खामोश भी नहीं हो पाईं थीं, ताडमेटला की धरती में हमारे जांबाज शहीदों का लहू अभी जज्ब भी नहीं हो पाया था, रायगढ और जशपुर के सुदूर ग्रामीण अंचलों में शहीद सपूतों की चिता के फूल भी अभी चुने नहीं गए थे कि राजधानी रायपुर के बर्बर और अय्याश धनकुबेरों ने आनंदोत्सव मनाना शुरू कर दिया.